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जुबान अनपनी ख़ामोश रखनी पड़ी - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जुबान अनपनी ख़ामोश रखनी पड़ी

  • 90
  • 1 Min Read

ख़्यालात थे सोच थी अल्फ़ाज थे आवाज थी फिरभी
इक शख़्स को ज़बान अपनी ख़ामोश रखनी पड़ी!!
© "बशर"

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