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कवितानज़्म
लो हम भी आज बशर अपने सुख़न का दीवान लिखते हैं तुझसे है चमन में रोनक तुझबिन दुनिया वीरान लिखते हैं इक तिरे आ जाने से खिजा में आ जाती है मौसमे -बहार तुझ को अपनी हयात ए डवाँ-डोल का मीज़ान लिखते हैं © "बशर" بشر