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कवितानज़्म
अपनी और अपने चाहने वालों की खैर मनाईए दोस्तों की दुश्मनी से किसीसूरत बचकर निकल जाईए! अदावत भी खुलकर करते हैं रक़ीब तिरे बशर अहबाब की रक़ाबतें पहचानने का इल्म कहाँ से लाईए! @ डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر