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कवितानज़्म
शोर उन की मुसलसल ख़ामोशी का अब सुना नहीं जाता ज्वाब इन सन्नाटों का पुरजोर सदा से भी कहा नहीं जाता फ़िराक़े-हबी में येह फुरक़त और फासला है इंतेहा ए हिज्र वस्ल -ए- यार में इन दूरियों का ये फासला सहा नहीं जाता © 'बशर' بشر bashar