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कवितानज़्म
है खौफ़ कितना मासूम परिंदों को इन्सान से वो कह भी नहीं सकते हमें अपनी ज़बान से दश्त सब्ज दरख्तों के हम ने सहरा बना दिए वो शाख पर भी रह नहीं सकते इत्मिनान से © 'बशर' بشر.