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कवितानज़्म
जिन पर हमने अपनी उम्रे-तमाम लुटाकर रख दी उन्होने हमारी मय्यत को भी नापकर दिया कफ़न, न दौलत न नाम अपना फ़क़त इक लाश बन गये बस दो गज जमीन में मिट्टी डालकर किया दफ़न! @"बशर"