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जो डूबन चाहो रस माधुरी........ - मदन मोहन" मैत्रेय (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जो डूबन चाहो रस माधुरी........

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जो डूबन चाहो रस माधुरी,
मन चलो वृंदावन की ओर,
मन भाव बनाओ वृजवालन की,
रुप धरो व्रज-ग्वालिन की,
पी भक्ति सुधा रस प्यालन की,
छोड़ो काम जगत-जंजालन की,
जग के मान-दंभ सब दूर करो,
प्यारे तोहे मिल जाएंगे नंद किशोर।।



अरी आली, श्याम मेरे वनमाली,
मुरली मनोहर प्यारे नंद किशोर,
बांकी छटा प्यारे हैं चितवन चोर,
तिरछी नजरिया डारे प्रेम की डोर,
मन भजन करो श्री चरणन की,
हृदय छवि पधरावो रस कुंजन की,
नयनन में छवि प्यारे जु को धरो,
चलो मन मेरे वृंदावन की ओर।।



अरी आली, श्यामा-श्याम को रटियो,
करियो प्रेम से श्री चरणन की सेवा,
चाखियो भक्ति-भजन रस मेवा,
करियो प्यारे कीर्तन भाव कलेवा,
देखियो माधुर्य रूप छवि मधुबन की,
मिटे जनम-जनम की प्यास इन नैनन की,
जपो हरि नाम जगत संताप हरो,
साधना ऐसी करो, मिल जाए जुगल-किशोर।।




.


मन चल मेरे यमुना पुलिन पर प्यारे,
जहां नाचते हैं नटवर नागर श्याम हमारे,
दधि की मटकी फोड़ रहे जहां ग्वालिन की,
रस माधुर्य बरस रही जहां कुंजन की,
नयन निरखियो प्यारे यशोदा नंदन की,
पद गाईयो प्यारे गोकुल रज-वंदन की,
मुख में राधे-श्याम सुधा-रस नाम धरो,
भाव जगा लो मन में काम जगत के छोड़।।

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