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माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली। - Anil Mishra Prahari (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।

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माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।

सूने हैं घर – आँगन सारे
सूनी छत , अमराई है,
बहन ढूँढ़ती पल-पल तुझको
रोता छुप – छुप भाई है।
माँ की आँखें नित्य बरसतीं
पापा राह निहारें री,
बाबा , दादी, चाचा माँगें
दुआ नित्य भिनसारे री।
तू भी रोयी, बाबुल रोया, प्रिय संग तू गठजोड़ चली
माँ की ममता, प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।

अब भाई -बहनों का घर में
लड़ना – मिलना, खेल न है,
थके, हार घर आयें पापा
पर तुझसे नित मेल न है।
ढूँढ़ रहीं आँखें तुझको पर
बगिया तुझ बिन खाली है,
पिक के बिना न सुन्दर लगती
बेसुध , बेकल डाली है।
यह जग की है रीत दुलारी,प्रियतम संग पथ मोड़ चली
माँ की ममता, प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।

कोने- कोने नीरस लगते
द्वार बहुत वीरान हुआ,
श्रांत,विकल करती है चौखट
जब से कन्यादान हुआ।
मन ढूँढ़े घर- आँगन तुझको
जैसे सबकुछ खोया है
जग की आँखों से बच हमने
चौबारे चढ़ रोया है।
तू खुश रहे हमेशा जग में, बाँध पिया संग डोर चली
माँ की ममता, प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।

अनिल मिश्र प्रहरी।

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