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कवितानज़्म
किस्सा मिरा उन को अफ़्साना जरा - सा लगा जल्द मरमिट जाऊँगा उन्हें मैं अधमरा-सा लगा हमारा गुलिश्तां कभी न सर- शब्ज नज़र आया घर गैरों का ही सदा उन को हरा -भरा सा लगा © "बशर" "bashar"بَشَر 🍁