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कवितानज़्म
तिरा येह रोजो-शब झूठ सुन सुन कर उकता गए हम कभी जायका बदलने केलिए ही सच बोल दिया करो! माना कि राजे -दिल हर किसीको बताना अच्छा नहीं गुबार निकलने केलिए ही मनके पट खोल दिया करो! @"बशर"