कवितालयबद्ध कविता
जीवन" ओ तू जरा तो साथ चल,
थामें हुए हाथों में हाथ पथ पर,
दे तो जरा हौसला, पालूं उम्मीदें,
तू संभाले रहना, जाऊँ मैं जब मचल।।
फलसफा जो बना हैं, मिटा भी सकूं,
कंकर भरे रास्तों पर कदम बढ़ा भी सकूं,
तू कर ऐसा, जगा रहूं, सताए नहीं नींदें,
मन जो बने वेगवान, तू बन जा संबल।।
बना हुआ जो हैं खाई कब से मन में द्वंद्व का,
वेदनाएँ कुंठित भावनाओं की झुलसा रहा हैं,
कुछ बातें चिंगारी बन झुलसाए जा रहा हैं,
ऐसे में तू ही अपना, बरसाना अमृत सा जल।।
ओ जीवन" तू साथ दे, पथिक हूं चलूं तेरे संग,
बीती हुई रात की हर उस बात को भुलाकर,
साथ मिले तेरा, चलूं नवल गीत गुनगुनाकर,
राहों से बाधा हटाते हुए, मिलेगा तेरा जो बल।।
जीवन" ओ साथ चल मेरे मिलाते हुए कदम,
भावनाओं की लहरें, बचाते हुए चलाऊँ नौका,
जलाऊँ उम्मीदों के दिए, तेल हो सदगुणों के,
मंजिल अभी दूर हैं, तू बस नहीं ऐसे राहे बदल।।
तू बस साथ चल, हाथों को जरा थामकर,
हूं तेरा-अपना ले मुझे, चल संग बातें मानकर,
मन की बातें, तू पढ़ भी तो सही जानकर,
तू निभाए जा साथ, करूंगा तेरी सेवा-टहल।।