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ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया

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बशर ने कहा बशर से कि बशर किधर गया
चश्मे-तर हुई और अश्क जमीं पर गिर गया

वजूद क्याहै हस्ती क्याहै ये मुअम्मा क्या है
ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया

© 'बशर' بشر.

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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