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कवितानज़्म
मफ़रूर कहे चाहेतो कोई मग़रूर कहे अपनी तौहीन -ए-वजूद कोई कैसे सहे जहांपर होने की कद्र न कहने की कद्र रुका रहे उस जगह पे तो कोई कैसे रहे ©️ "बशर"