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कवितानज़्म
रोते रहते हैं ऐश -ओ-इशरत में बसर करने वाले मस्ती से जीते हैं फ़ुटपाथ को ही घर करने वाले ऐश-ओ-आराम की नहीं तलब काम की रहती है चैनकी नींद सोते कर्म के सज्दे में सर करने वाले © बशर. bashar • بَشَر.