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वक़्तही कहां लगता है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

वक़्तही कहां लगता है

  • 46
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जमाने इक उम्र में गुज़र जाते हैं "बशर" इस जमाने में
वक़्तही कहां लगता है हयाते-मुस्त'आर गुज़र जाने में

@"बशर"

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चालाकचतुर बावलागेला आदमी
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वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
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मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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