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कवितानज़्म
जीना नहीं आसाँ यहाँ सब-कुछ करके देख लिया, ऐ ज़ालिम जिंदगी तेरे लिए हमने मरके देख लिया! सुकूँ से भरी राह-ए-सफ़र शायद मयस्सर ही नहीं, हर रहगुज़र-ए-सफ़र से हमने गुज़र के देख लिया! @"बशर"