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जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा। - Anil Mishra Prahari (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।

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जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।



सोयी– सी तकदीर जाग अब

छेड़ मृदुल नवगीत- राग अब,

हारे में भर आस और दम

कर न उन्हें अनदेखा ।

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।


यत्न सभी करके देखा है

बनती नहीं भाग्य - रेखा है,

भाग्यहीन नर के माथे रच

विभव, हर्ष की लेखा ।

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।


सुख-सुविधा से जो वंचित नर

उनकी भी तू करुण –व्यथा हर,

दीन -हीन की पर्णकुटी में

भी भर दे विधुलेखा।

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।


अनिल मिश्र प्रहरी।

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