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एक और भारतीय वीरांगना - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीऐतिहासिकप्रेरणादायक

एक और भारतीय वीरांगना

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एक और भारतीय वीरांगना
देशभक्ति के अनेकों उदाहरण से हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं किंतु यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमारे देश का इतिहास दक्षिण भारत का इतिहास और उत्तर भारत का इतिहास में बटा हुआ है। हमें विशेष जानकारी भी नहीं है।
स्वतंत्रता की लड़ाई गांधी ,नेहरू ,पटेल , सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंह , चंद्र शेखर आज़ाद द्वारा ही केवल नहीं लड़ी गई,और भी अनेकानेक वीरों और वीरांगनाओं के बलिदान इसमें शामिल है।
एक ऐसी महिला क्रांतिकारी जिनका जन्म झाँसी रानी लक्ष्मी बाई से 100 साल पहले हुआ था,वे थीं,
रानी वेलु नाच्चियार - इनका जन्म सं 1730 में रामनाथपुरम (अब तमिल नाडु का एक जिला ) में शाही परिवार में हुआ था।इनके पिता रामनाथपुरम के महाराजा श्री विजयराघुनाथा सेतुपति थे।इनकी माँ का नाम मुथुआथल नाच्चियार था। बचपन से ही वेलु नाच्चियार बहुत साहसी और प्रतिभाशाली थी , इन्होने बचपन में ही तलवार बाजी , घुड़सवारी ,सिलम्बम और धनुष विद्या प्राप्त कर ली थी। इन्हें तमिल के आलावा उर्दू ,अंग्रेजी , संस्कृत और फ्रेंच भाषाओं का भी ज्ञान था।
इनकी शादी शिवगंगा के महाराजा मुथु वडुगानाथा तेवर के साथ हुई।महाराजा मुथु वडुगानाथा अंग्रेजो की दमनकारी नीति के खिलाफ थे। अंग्रेजों ने जबरन भारी करजब उन्होंने अंग्रेजो को कर देने से इंकार कर दिया, तब अंग्रेजों ने अरकोट के नवाब से मिलकर इनके राज्य पर हमला बोल दिया। दुर्भाग्य से युद्ध में राजा मुथु वडुगानाथा तेवर को वीरगति प्राप्त हुई। अंग्रेजों के लिए अब रास्ता साफ था।अंग्रेज राज्य पर कब्ज़ा कर रानी वेलु नाच्चियार को गिरफ़्तार करना चाहते थे। इस जानकारी के मिलते ही रानी वेलु नाच्चियार वहां से अपनी २ साल की बच्ची के साथ फरार हो गयीं। उन्होंने अज्ञात वास में रहते हुए मैसूर के नवाब हैदर अली के साथ मिलकर एक सेना तैयार की, जिसका नेतृत्व उन्होंने ख़ुद किया।
इनकी सेना की महिला सेनापति कुइली दुनिया की पहली आत्मघाती हमलावर थी जिन्होंने अंग्रेजो के गोला बारूद के भंडार में अपने तन में बारूद बाँध कर प्रवेश कर भंडार को उड़ा दिया था।
सेना जुटाकर रानी वेलु नाच्चियार ने दुबारा अंग्रेजों के साथ युद्ध किया और जीत हासिल की। इस तरह युद्ध कर के दोबारा अपना राज्य हासिल करने वाली वे इतिहास की पहली महिला बनीं। उसके बाद उन्होंने दस वर्षों तक राज्य किया। १७९० में उनका देहांत हो गया।

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दादी की परी
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