कवितानज़्म
दुख - दर्द सब के सुना करो
कुछ वक़्त सब से मिला करो!
गरकोई दगा करे कर्म उस का
जफ़ा के बदले भी वफ़ा करो!
गैरों के रंजो-ग़म भी सुना करो
चैन -ओ-अमन की दुआ करो!
इस्लाहे-दीन फ़र्ज़ आदमी का
बा - अक़ीदत फर्ज अदा करो!
सुकूने-क़ल्ब से सब बसर करें
मुफ़लिसी में सबसे मिला करो!
नासेह की नसीहत है काम की
नसीहतों पर अम्ल किया करो!
@"बशर"