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कवितानज़्म
ऐय जिंदगी तुझसे न कोई गिला है मुझे मेरी औक़ात से ज्यादा ही मिला है मुझे ग़म ए हयात जी लेंगे मुकद्दर समझकर अपने कर्मों का ही सिला मिला है मुझे ©"बशर"