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कवितानज़्म
साथीसंगी सखा दोस्त हबीब वो मेरा सरमाया था मिरे सफ़र में मिरे साथ - साथ चल कर आया था मुझ को जिस हमसफ़र के साथ होने का गुमाँ था मुड़कर जो देखा और कोई नहीं मेरा ही साया था @ "बशर "