लेखआलेख
(नोट : यह एक सत्य कथा है। इसमें उपस्तिथ सभी पात्र एवम घटनाएं पूर्णतया सत्य पर आधारित है।)
आज मैं आपको बहुत ही साधारण से इंसान के बारे में बहुत कुछ जाना अनजाना सा बताने जा रही हूँ। बहुत ही अनोखी और अलग सी कहानी है उनकी। उन्हें हम प्यार से नानाजी कहते थे। उन्हें नानाजी सिर्फ मैं कहती थी। बाकी दुनिया के लिये वो भाई थे सबके प्यारे भाई। उनके बच्चे भी उन्हें प्यार से भाई ही बुलाते थे, बड़ी अनोखी बात है ना ये तो चलिये थोड़ा उनके बारे में भी जान लेते हैं ताकि आप सभी भी उनकी कहानी पढ़कर आनन्दित हो सकें।
हाँ तो भाई मतलब मेरे नानाजी उनका नाम श्री लक्ष्मण स्वरूप शर्मा उनका जन्म 19 जुलाई 1922 में हुआ। बिल्कुल सही आजादी के लिये जो भी जद्दोजहद चली सभी उनकी कानो सुनी आंखों देखी थी। परन्तु उनकी जिन्दगी की जद्दोजहद भी कम नही थी। बाल अवस्था ने ही उन्हें बड़ा और जिम्मेदार बना दिया था। उनकी माता का नाम शीशों था। अपनी माता से वो अथाह प्रेम करते थे। वह फजलपुर (मेरठ) की रहने वाली थी। इनका स्वभाव बहुत ही शीतल था। आस्था से परिपूर्ण, एवम मातृ वात्सल्य से परिपूर्ण थी यें। जीवन की हर परेशानी को बहुत ही सहज स्वभाव से एवम अपने कठिन परिश्रम से इन्होंने दूर किया। इनके पति श्री मनीराम कौशिक बहुत ही सरल स्वभाव के इंसान थे। पेशे से मनीराम जी किसान थे। जब लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी 2 वर्ष के थे। तभी इनके सिर से इनके पिता का साया छिन गया। इतनी कम उम्र में पिता और पति का साया सिर से उठ जाने से घर की आर्थिक व्यवस्था बुरी तरह से हिल गयी। खेती का सारा काम मनीराम जी ही देखते थे। उनके जाने से खेती बाड़ी और घर बर्बादी की कगार पर आ खड़ा हुआ था। तब खेती करने के लिये माँ शीशों देवी ने जी तोड़ मेहनत शुरू कर दी। उस समय औरतें घर से बाहर काम करने के लिये इतनी आजाद नही थी जितना कि आज हैं। बहुत सी बातें भी बनाई जाती थी। औरतें घूंघट में ही रहती थी। परन्तु शीशों देवी ने लोगो की फिक्र किये बिना अपने बच्चों के लालन पालन हेतु खेती का कार्य स्वयं शुरू किया। - क्रमश: