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रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें

  • 14
  • 2 Min Read

मंजिलों मुकामों ठिकानों की बात क्या करें,
लौटते सफ़र में मकानों की बात क्या करें!

समेटने केलिए जमाया जाता है सामान यहाँ,
ख्वाबों ख़्वाहिशों अरमानों की बात क्या करें!

समेटकर हाट अपनी चलते बने हैं दुकानदार,
उठ चुके बाजार के दुकानों की बात क्या करें!

मुसलसल आना-जाना नहीं टिकाऊ ठिकाना,
रैनबसेरेमें आतेजाते मेहमानोंकी बात क्या करें!

© 'बशर' bashar بَشَر.

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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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