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अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر

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राममय हो रहा पुर्जा- पुर्जा मैं रवां होता जा रहा हूँ
ज़िस्म से बूढा मग़र जाँ से मैं जवां होता जा रहा हूँ

बस्तीकूचे सब साथीसंगी छूटे यादों की रहगुज़र में
अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ

आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक
@ "बशर" بشر

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