कवितानज़्म
येह सितंबर की गर्मी और उड़ते हुए बादल
बिन बरसे गुज़र जाना इनकी पुरानी आदत
है मुद्दत से मुंतज़िर ठण्डी फुहारों की धरती
रुत बरसात बीते गहराए इंतज़ार की शिद्दत
जमीं की अपनी शिद्दत अब्रकी अपनी आदत
कुदरतके रंग निराले जुदा हर शयकी फ़ितरत
मिज़ाज मौसमों के ये रितुओं का आनाजाना
नियति का ताना-बाना जुदा है सब की नीयत
© dr. n. r. kaswan 'bashar' بشر