कवितानज़्म
सबकुछ कहकर भी हम कुछ न कह सके
वोह चुप रह कर भी सब - कुछ कह गए
वो ख़्याल बनके आए ख़्वाबसे निकल गए
खाली हाथ लिए हम हाथ मलते रह गए
हम थेकि बस साहिल की रेतपर ही बैठे रहे
वे लहर बनके आए पानी बनकर बह गए
सबा की सरसराहट सी बगल से निकल गई
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر