कवितानज़्म
ये राहे-सफ़र जितना मेरा उतनाही तेरा भी है
दर्दे-ए-सफ़र जितना मेरा उतनाही तेरा भी है!
हमराही हैं हम-सफ़र हैं हम-मंजिल भी हैं हम
ये जमीं घर जितना मेरा उतना ही तेरा भी है!
लंबा है सफ़र और कांटो-भरी है यह रहगुज़र
कांटों से डर जितना मेरा उतना ही तेरा भी है!
क्यूं न करलें मुक़म्मल यह सफ़र मिलजुलकर
जितना येह सफ़र मेरा है उतना ही तेरा भी है!
@"बशर"