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कवितानज़्म
तपना गवारा किए नीले अम्बर के तले सरपर खुला आस्मा ज़रूरी था क्या! घर पर छप्पर तो था 'बशर' तिरे सरपर इक उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या! © 'बशर' بشر.