कवितानज़्म
स्वाल ये नहीं के किसी की नीयत कैसी है
मुद्दआ ये हैके तेरी अपनी तबियत कैसी है
वक़ार-ए-किरदार ही से ज़ाहिर हो जाता है
किसीकी औक़ात कैसी है हैसियत कैसी है
तरबियत को कोसता है किसकी क्यूं बशर
आज- कल के लोगों में इन्सानियत ऐसी है
मक्कारी छुपा लेते हैं अदाकारी के हुनर से
भोली सूरत के चेहरों पे मासूमियत ऐसी है
@"बशर"