Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
किसीकी शाम -ए -तरब बनो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

किसीकी शाम -ए -तरब बनो

  • 64
  • 1 Min Read

तुम न वजह किसीके दर्द की जब तब या अब बनो
बनो तो किसी के सुकून का मग़र 'बशर' सबब बनो

सहारा किसी का बनो डूबते हुए का किनारा बनो
सहर -ए-उम्मीद बनो किसी की शाम -ए -तरब बनो

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"

logo.jpeg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg