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कवितानज़्म
तुम न वजह किसीके दर्द की जब तब या अब बनो बनो तो किसी के सुकून का मग़र 'बशर' सबब बनो सहारा किसी का बनो डूबते हुए का किनारा बनो सहर -ए-उम्मीद बनो किसी की शाम -ए -तरब बनो © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"