लेखआलेख
न जाने प्रभु ने कौन से दुख का पहाड़ उनके घर पर गिराया था कि धीरे – धीरे इनके सभी भाई किसी न किसी कारणवश युवावस्था में ही मृत्यु का ग्रास बन गए। शीशों देवी अकेली ही इन सभी दुखो से जूझती रही। न जाने क्या कारण था कि उनके भाग्य में पति एवम बच्चे दोनों का ही सुख न रहा। एकमात्र बचे लक्ष्मण स्वरूप शर्मा की चिंता में वह दिन - रात घुलने लगी। वह हर क्षण कोशिश करती की उन पर कोई आंच भी न आये। परन्तु एक दिन लक्ष्मण स्वरूप शर्मा घर में सोये थे। उस वक़्त उनकी उम्र कुछ 10 या 12 साल की रही होगी। अचानक घर की छत गिर गयी और लक्ष्मण स्वरूप शर्मा उसके नीचे दब गए। बड़े जतन से मिट्टी हटाकर धीरे-धीरे इनको बाहर निकाला गया। सकुशल बाहर आने के पश्चात शीशों देवी ने निर्णय लिया कि वह आजीवन माता होकर भी कभी लक्ष्मण स्वरूप शर्मा की माता नही कहलाएंगी। अतः उन्होंने लक्ष्मण स्वरूप शर्मा को उन्हें माँ बुलाने से मना कर दिया ताकि उनका बेटा दीर्घ आयु हो। उस समय औरतों की भगवान में आस्था भी ज्यादा थी। एक औरत का माँ होकर माँ कहलाने का अपने बच्चे को अधिकार न देना वाकई कोई छोटा फैसला न था। शीशों देवी इतने दुख से निकल चुकी थी कि उनके अंदर अपने बेटे को खोने का डर बैठ गया था। छोटेपन से ही लक्ष्मण स्वरूप शर्मा सभी के आंखों का तारा रहे। उन्हें खेती से दूर रखा गया। अतः उन्होंने अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया। धीरे धीरे आस पास के गाँव में पढ़ने जाने लगे। गांव में अधिक सुविधा न होने के कारण यें साईकिल से कई किमी. की दूरी तय करके डॉक्टरी की पढ़ाई के लिये जाया करते थे। बड़े होने पर इन्होंने खतौली से शास्त्री की एवम मेरठ से आयुर्वेदा की पढ़ाई पूरी की एवम अपना सम्पूर्ण जीवन मरीजों की देखभाल में लगा दिया दूर - दूर से लोग इनके पास अपना मर्ज लेकर आते थे। उस समय आस - पास के 25 गाँव में कोई डॉक्टर नही था। बहुत से लोग जो लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जी के पास नही आ सकते थे वह उन्हें देखने 20 किमी तक कि दूरी पर भी जाया करते थे बहुत बार भारी मुसीबतों का भी सामना किया। आंधी हो चाहे तूफान हो उन्होंने अपने पेशे को पूरी जिम्मेदारी और वफादारी से निभाया। आस पास के सभी गांव में उनकी डॉक्टरी की खूब चर्चा होने लगी। उन्होंने बहुत से मरीजों का फ्री में भी इलाज किया उस समय डॉक्टर की फीस भी अधिक नही होती थी। जो मरीज अधिक बीमार होने के कारण लक्ष्मण स्वरूप शर्मा के पास नही आ पाते थे उन्हें वह स्वयं ही उनके घर जाकर देखकर आया करते थे। उन्होंने रात - रात भर जागकर मरीजों की सेवा की। अच्छे ज्ञाता होने के बाद भी उन्होंने गांव में ही रहकर सभी मरीजों की सेवा की। उनका मानना था कि शहरों में तो फिर भी अच्छे हॉस्पिटल बने हैं परन्तु मेरी जरूरत गांव के लोगो को ज्यादा है। और उन सभी लोगो से उनका विशेष लगाव भी था। - क्रमशः