Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
विदेशी शहर - Bindesh kumar Jha (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

विदेशी शहर

  • 105
  • 3 Min Read

विदेशी शहर

इमरती ऊंची है,
पर उतनी नहीं है,
जितनी मेरी पतंग ने देखी है,
गेंद जितनी ऊंची फेंकी है।

रफ्तार तेज है गाड़ियों की,
घंटे का सफर मिनट में,
मैंने दिनों का सफर किया तय,
अपनों के साथ वो गुजरता समय।

लोगों की भीड़ है,
आसमान भी साफ नहीं,
फिर भी अकेला हूं यहां,
अकेले हो भी अकेला ना था वहां।

कीमतें तय है,
मशीन दुकान का मालिक है,
मूल भाव किस्से करूं,
बचे पैसे का क्या मिठाई लूं।

फूल तो बहुत है,
सुगंध नहीं है कहीं भी,
जड़ें कैद है गमले की दीवारों में ,
और हम कल्पना और विचारों में।

बिंदेश कुमार झा

IMG-20240518-WA0017_1716097452.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg