कवितानज़्म
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
मंदिर में खुदा मस्जिद में भगवान नज़र आता है
हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है!
रंग बिरंगे गुलों का चमन गुलदान नज़र आता है
मुस्तैद यहाँका होशियार बागवान नज़र आता है!
मस्जिद की मीनारों से सुनते हैं शंखनाद अक्सर
पंडित मंदिर से देता हुआ अज़ान नज़र आता है!
भूखा ना सोने पाए बे-सबब बे-बस लाचार कोई
खेतों में मेहनतकश खड़ा किसान नज़र आता है!
चैन-ओ-अमन से महफ़ूज़ रहें मेरे सब हम-वतन
सरहदपे मुस्तैद खड़ा हुआ जवान नज़र आता है!
मेरे देश में पैदा होने वाला हर -इक भारत-वंशज
कहीं रहे हमारी मिट्टी की पहचान नज़र आता है!
प्रगति -चक्र धरे हरा श्वेत केशरिया सिर्फ़ रंग नहीं
तिरंगेमें हमें हमाराप्यारा हिंदुस्तान नज़र आता है!
© डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"