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क्रोध, गुस्सा,नफरत, अहंकार है... मीठे जहर - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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क्रोध, गुस्सा,नफरत, अहंकार है... मीठे जहर

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#क्रोध,गुस्सा,नफरत,अहंकार...यह सब है धीमा जहर...

वैदिक धर्म में मनुष्य के चार शत्रु लिखे गए हैं।काम ,क्रोध,मद और लोभ। इनमें दो और जुड़ गए हैं।गुस्सा और नफरत यह धीमे जहर कहलाते हैं।
*क्रोध
क्रोध एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है जिसका दमन नहीं, प्रबंधन होना चाहिए।क्रोध को दबाने से व्यक्ति उसके बारे में ज्यादा सोचता है उतना ही क्रोध पोषित होता है।क्रोध ऊर्जा है और जितना अधिक इसका विकिरण होगा उतना ही यह फैलेगा।क्रोध का मूल कारण हमारी धारणाएं और अपेक्षाओं हैं।जब व्यक्ति या परिस्थितियां हमारी धारणा और अपेक्षा के विपरीत जाती हैं ,तब हमें क्रोध आता है।
*क्रोध /गुस्सा
अब देखें क्रोध और गुस्से में क्या अंतर है। क्रोध अंतराल पर होता है, जबकि गुस्सा क्षणिक होता है।क्रोध हमेशा विनाशकारी होता है।गुस्सा कभी भी विनाशकारी नहीं होता।क्रोध से इंसान आग बबूला हो जाता है जबकि गुस्से में नहीं होता।गुस्सा आने के बाद जब चला जाता है तो पश्चाताप होता है,जबकि क्रोध में नहीं होता।गुस्सा केवल मिथ्या वचनों से या मिथ्या बातों से आता है तो वह अपने शरीर पर प्रभाव नहीं डालता, जबकि क्रोध अहंकार के कारण आता है और अपने शरीर को भी ज्यादा प्रभावित करता है।गुस्से पर नियंत्रण पाना आसान है, जबकि क्रोध पर नियंत्रण पाना अच्छे- अच्छों के लिए बहुत ही कठिन है।
*नफरत
हम सब इंसान है और हम सब में एक नैसर्गिक प्रतिभा है,वह है सामाजिकता।हम समाज में एक-दूसरे से जुड़ते हैं। इसी जुड़ाव के माध्यम से नफरत और स्नेह पनपते हैं। यदि एक-दूसरे के प्रति स्नेह और दयाभाव हो तो नफरत खत्म होती है, इनके अभाव में पनपती है।
नफरत डर की वज़ह से भी पैदा होती है।जिससे हम डरते हैं उससे हम नफरत करते हैं। इसलिए जब तक डर रहेगा, तब तक नफरत भी रहेगी।नफरत के कई रूप हैं। लेखक एन्ड्रू सुल्लीवन कहते हैं, “नफरत की एक वज़ह है डर, तो दूसरी है दूसरों को तुच्छ समझना; एक नफरत ताकत की वज़ह से होती है, तो एक निर्बलता की वज़ह से; एक नफरत में बदले की भावना होती है, तो दूसरे में जलन की . . . अत्याचार करनेवालों के दिल में, तो अत्याचार सहनेवालों के दिल में भी नफरत होती है।"
हम सब में आक्रामकता और दया जन्मजात गुण है, मगर घृणा हम अपने परिवेश से सीखते हैं और इसीलिए इसे रोकने का सबसे कारगर उपाय शिक्षा है। व्यक्ति और समाज दोनों के शिक्षित होने से , वे अपनी-अपनी कमजोरियों को पहचानने और उनसे उबरने में सक्षम हो पाते है।
*अहंकार
अहंकार एक नै -सर्गिक दोष है।घमंड उसका प्रदर्शन है।एक कारण है, दूसरा कार्य है।वास्तव में अहंकार स्वयं को दूसरों से बलशाली और श्रेष्ठ समझने और दिखाने की भावना है। अहं भाव यदि उचित मार्ग की ओर जाता है तो देवत्व में परिणत होता है और यदि अनुचित पथ पर चलता है तो अनर्थ कर सकता है। अहंकारी अपने से ऊपर उठकर किसी के बारे में नही सोच पाता।औरों को छोटा समझता है।अपने धर्म ,जाति , वंश ,पद ,प्रतिष्ठा ,धन-वैभव , ऐश्वर्य को श्रैष्ठ कहना, दूसरों के सम्मान की अनदेखी करना अहंकार है।अहंकार बुद्धि और विवेक का नाश करता है।शालीनता और विनम्रता से अहंकारी का छत्तीस का आंकड़ा रहता है।
इन बुराइयों को नियंत्रित करने के लिए सबसे सरल और प्रभावी ध्यान तकनीक श्वास व्यायाम है। साँस लेने के व्यायाम से हम जो श्वास लेते हैं, उसे संतुष्टि में लाता है और हर सांस से बाहर निकलते हुए सभी नकारात्मकता के निशान हटाते हैं। वरना यह धीमा जहर धीरे-धीरे मन मस्तिष्क दोनों को प्रभावित कर देता है और व्यक्ति खोखला हो जाता है।
गीता परिहार
अयोध्या

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