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साहित्य संगीत कला विहीन साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीन - Asha Khanna (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

साहित्य संगीत कला विहीन साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीन

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ज्ञान और अनुभव से संचित कोष को साहित्य कहते है I साहित्य हमे समाज की पुरानी परम्पराओ रीति कुरीतियों से अवगत कराता है I साहित्य उस समय, उस काल मे साहित्यकारों द्वारा देखा गया उस समाज का आईना होता है I जो अच्छा साहित्य होता है वह युगो-युगो तक पढ़ा जाता है, और समाज के लिए प्रेणा श्रोत होता हैI उस समय मे जो समाज मे चारों ओर फैली अच्छाईया, विसंगतिया को देखता है , उन्ही मानसिक संवेदनाओ को अनुभवो को जब लिखित रूप मे काजों पर उतारता है, वही साहित्य बन जाता है I उन्ही संवेदनाओ, भावनाओ को वह कभी काव्य के रूप मे लिखता है , कभी व्यंग के रूप मे लिखता है कभी गध्य के रूप मे व्यक्त करता है I
साहित्य का मतलब ही सबका हित होता है Iअच्छे साहित्य से हमारा वैद्विक, मानसिक, नैतिक विकास के साथ-साथ एक मार्ग दर्शक के रूप मे भी हमारे साथ होता है I गध और पध साहित्य के माध्यम से सत्य, मनोभाव को व्यापक्ता के साथ प्रकट किये हुए व्यंग होते है I
साहित्य मे भाषा का भी बहुत महत्व होता है I साहित्यकारों ने अपनी रचनाओ को विभिन भाषाओ मे बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैI भाषा के माध्यम से अपने अंतरंग की अनुभूति को जितने सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है वह साहित्य उतना ही सुंदर और लोकप्रिय हुआ है I
श्रेष्ठ साहित्य भावनात्मक स्तर पर व्यक्ति और समाज को संस्कारिता तथा युग चेतना से साक्षात्कार कराता है I समाज का उत्थान तथा विकास करने मे साहित्य और कला का बहुत बड़ा योगदान हैI संस्कृत मे एक सुत्ति भी है I
“साहित्य संगीत कला विहीन साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीन”
साहित्य कला, संगीत के बिना समाज देश पशु के समान होता है जिस काल में अच्छे साहित्यकार हुये हैं श्रेष्ठ साहित्यक रचनाएं लिखी गयी है उस काल के लोग बहुत गुणी बुद्धिमान, नैतिकतावादी, और विवेकशील हुए हैं।
इसी तरह से जिस काल का संगीत कला संस्कृति अच्छी होती वह युगो-युगो तक इतिहास के पन्नो पर छायी रहती है और धरोहर के रूप में सहेजा जाता है।
साहित्य की शक्ति असीमित है साहित्यकार अपने तीर्व कटाक्ष के माध्यम से सोये हुए जनमानस को झकझोर सकता है। समाज में फैली कुरीतियों कुप्रथाओ साहित्य के माध्यम से रोकने का प्रयास करता है
हिन्दी की एक कहावत भी है “कल्म की ताकत तलवार की ताकत से भी अधिक होती है” यह एक सार्वभौमिक सत्य है। साहित्य में युग-परिवर्तन की क्षमता निहित होती है।
जब देश में कोई महामारी युद्ध की स्थिति हो समाज में जात –पात, अमीर-गरीब, में सामाजिक उथल –पुथल हो रही हो, उस समय हमारे साहित्यकारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए लोगों को मनोबल बढ़ाने के लिए जागरुकता पैदा करने के लिए दिलों में जोश पैदा करने का काम करते है।
भक्ति काल को हिन्दी का साहित्य का स्वर्णिम काल के माना जाता है. कविवर तुलसी, सुरदास, कबीर, जायसी, मीरा, रसखान आदि भक्ति काल के साहित्य रचियता रहे हैं।
कबीर ने अपनी कविताओ के माध्यम से जात-पात ऊंच नीच पर प्रहार किया हैI तुलसीदास जी अपनी रामायण में त्याग और समर्पण का भाव लोगों में पैदा करने का क्या किया है। भगवान राम की उपासना का अनूढ़ा और सर्वश्रेष्ठ रचना की ख्याति प्राप्त की है।
सुरदास जी ने अपने काल मे क़ृष्ण की भक्ति का संजीव चित्रण अपनी कविताओ में किया है I प्रेमचन्द्र ने अपनी कहानियों में गरीब से जूझते हुये परिवारों पर कहानिया लिखकर अमीरों पर कटाक्ष किया है।
इसी तरह से सभी साहित्यकारो ने समयऔर कालनुसार अपने साहित थी रचना कर समाज मार्ग दर्शन किया है I एक अच्छे साहित्य में कथावास्तु का विन्यास एवं घटनाओं को अच्छे तरीके से संयोजन करना भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता हो। साहित्य रचना प्रभावोत्पादक, जानकारीपूर्ण उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए। जिससे थी साहित्य रुचिकर और पाठक को अपनी ओर आकर्षित कर सके। एक अच्छा साहित्य वही होता है जो मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक जटिलताओं, शैक्षिक स्तर पर समाज में सुधार लाता है I
किताबें एक अच्छी दोस्त भी कही जाती है लेकिन आजकल इतना अच्छा साहित्य नही मिलता है और न ही लोगों में साहित्य पढ़ने में रुचि हो टीवी मोबाइल ने आज की पीडी को बिताया पर से दूर कर रही है I मेरे विचार से साहित्य का अर्थ है जिसमे तत्कालीन समाज का हित है और आने वाली पीडी का मार्गदर्शन करने का समर्थ होl

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