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कवितानज़्म
अपने बच्चों का पेट भरने के लिए रोज मुट्ठी खाली करनी पड़ती है! अपने गले निवाला उतरे न उतरे घरमें सबकी थाली भरनी पड़ती है! खुद की होली बे-शक जल जाए औलाद की दिवाली करनी पडती है! मुफ़लिस को चराग़ जलाने के लिए अपनी रातें काली करनी पड़ती हैं! @"बशर"