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कवितानज़्म
वो सहन वो शजर वो दीवारो-दर बुलाता है, गांव में मुझ को मिरा अपना घर बुलाता है! भुलाया मैने अपनों को ऐसे कोई भुलाता है, घरतो अपना घर है फिरभी मग़र बुलाता है! @ "बशर"