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हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं

  • 22
  • 2 Min Read

हमारे दीदार भी जिन्हें नहीं हैं गवारा
हम पर अपनी निगाहे-करम रखते हैं!

शराफ़त का तकाजा कहिए कि हम
रक़ाबत मेंभी दोस्तीका भ्रम रखते हैं!

माना कि रग़बत नहीं अपने रक़ीब से
अदावत मेंभी आंखोंकी शर्म रखते हैं!

फासलों के मिटनेकी जिंदा उम्मीद में
हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं!
@'बशर'

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