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अकेलपन की राहों अकेला मुसाफिर मै - KAUSHAL MATAURIYA (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अकेलपन की राहों अकेला मुसाफिर मै

  • 31
  • 4 Min Read

अकेलेपन की राहों का अकेला मुसाफ़िर मै
खामोश रातों के सन्नाटो मे बसर करता मै
उदासियां जहाँ अपने पूरे शबाब पर होती
उन्ही उदास बस्तियों का इकलौता बासिंदा मै

खामोशी और तन्हाइयो का एक हमराज मै
मिलने को जिससे आती हैं वो एक यार मैं
मन भारी करता है ये जिंदगी का खालीपन
खुदा जाने ये किस दोराहे पर आ खड़ा हूँ मैं

मौन भाता है मुझे, क्यों निशब्द रहता हूँ मैं
प्रेम के दूजे पथ विरह मे कहाँ बिछड़ा हूँ मैं
एक ही कमरे मे सिमट गई है दुनिया मेरी
क्यों उसे ही अब बेहिसाब याद करता हूँ मै

खामोशियों के शोर में सब सुध खोया मै
अब थोड़ा शाँत,थोड़ा गंभीर सा रहता हूँ मैं
राब्ता नही है मेरा कोई, बाहरी दुनियां से
इस अकेलेपन,तन्हाई मे ही तो आबाद हूँ मै
- © कौशल_माटौरिया

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