कवितानज़्म
अकेलेपन की राहों का अकेला मुसाफ़िर मै
खामोश रातों के सन्नाटो मे बसर करता मै
उदासियां जहाँ अपने पूरे शबाब पर होती
उन्ही उदास बस्तियों का इकलौता बासिंदा मै
खामोशी और तन्हाइयो का एक हमराज मै
मिलने को जिससे आती हैं वो एक यार मैं
मन भारी करता है ये जिंदगी का खालीपन
खुदा जाने ये किस दोराहे पर आ खड़ा हूँ मैं
मौन भाता है मुझे, क्यों निशब्द रहता हूँ मैं
प्रेम के दूजे पथ विरह मे कहाँ बिछड़ा हूँ मैं
एक ही कमरे मे सिमट गई है दुनिया मेरी
क्यों उसे ही अब बेहिसाब याद करता हूँ मै
खामोशियों के शोर में सब सुध खोया मै
अब थोड़ा शाँत,थोड़ा गंभीर सा रहता हूँ मैं
राब्ता नही है मेरा कोई, बाहरी दुनियां से
इस अकेलेपन,तन्हाई मे ही तो आबाद हूँ मै
- © कौशल_माटौरिया