कवितानज़्म
जी भरकर जिए भी नहीं कि जीने से जी भर गया
मर मर कर जीते रहा जीने लगा तो बशर मर गया
धोबी के कुत्ते की तरह घर का रहा न घाट का रहा
रुके बग़ैर कभी इस डगर गया कभी उस डगर गया
मंज़िल -ए-मक़्सूद मिली ना मनचाहा मुकाम मिला
चलते चलते रहगुज़र ही में बेसबब बशर गुज़र गया
© 'बशर' bashar بسر.