कविताभजनलयबद्ध कविताछंदगीत
"राम अवतरण"
राजा दशरथ के पुत्र चार,सक्षम भुजदंड वपू।
श्रीराम चंद्र तेजस महान,अजर-अमर रहित रिपू।।
पुरुषशिरोमणि सनातन विष्णु,मनुष्य लोक अवतरे।
परम प्रचंड साक्षात भगवन,देव टेर से उतरे।
रावण वध की अभीप्सा साध,राघव अवतीर्ण हुए।
अमित प्रतापी की आभा से,जननी जन अदिति हुए।
रूपवान पराक्रमी महान,न परदोष विलोकना।
शांत चित्त कह सदा मधु वचन,भू पर न दुजी तुलना।।
मिथ्या वचन नहीं राम कहें,अंतस संतुष्ट रहें।
परम दयालु सदैव विजेता,सतजन के चरण गहें।।
वृद्धों का वें सम्मान करें,कभी न कटु वचन कहें।
चरित्र-ज्ञान,अस्त्र-शस्त्रों की,सत्पुरुष शिक्षा गहें।।
ब्राहम्ण पुजारी गौरक्षक,भूषण अति उदारता।
शरणागत रक्षक वें ज्ञानी,झलक परम पवित्रता।।
कुलोचित आचार तरुण आयु,विनयशील कृतज्ञता।
शास्त्र ज्ञाता गुरु भक्त सम्यक,समर में स्थित प्रज्ञता।।
धनुर्वेद में श्रेष्ठतम राम,नितिज्ञ संचालन के।
परास्त न कर सकते देवता,मानक जनपालन के।।
अवहेलक न प्राणी मात्र के,काल के वशी करता।
सकल प्रजा मोहन रखें पिता,प्रीति-यश वृद्धि क्षमता।।
हरिगीतिका छंद में रचित कविता "राम अवतरण" का छोटा सा भाग आज राम लला के जन्मोत्सव पर।
रचियता:-हेमंत।