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कवितानज़्म
इस ज़माने के आगे भी एक ज़माना है ये दुनिया तो बस इक मुसाफ़िरखाना है मकां है न मकीं है मंज़िल है न ठिकना है जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है ....................... © dr.n.r.kaswan 'bashar' بشر