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कवितानज़्म
देखते ही देखते पल-पल हरपल हर-हाल गुज़र गया माहे - जनवरी से दिसम्बर तक पूरा साल गुज़र गया गुज़रते हुए वक़्त के संग हर रंजो-मलाल गुज़र गया बेहतर साल की उम्मीद में बुरे का ख़्याल गुजर गया © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر