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बुरे का ख़्याल गुजर गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

बुरे का ख़्याल गुजर गया

  • 4
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देखते ही देखते पल-पल हरपल हर-हाल गुज़र गया
माहे - जनवरी से दिसम्बर तक पूरा साल गुज़र गया

गुज़रते हुए वक़्त के संग हर रंजो-मलाल गुज़र गया
बेहतर साल की उम्मीद में बुरे का ख़्याल गुजर गया

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر

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