कविताअतुकांत कविता
एक बीज बोया
प्रेम का
सोचा हमेशा की तरह ही
एक पेड़ बनकर उगेगा
आंखों को यही सब
देखने की
आदत जो है
इतनी सदियों से लेकिन
सोच के विपरीत हो रहा है
आजकल के युग में
सब
सब कुछ उलट पुलट
तहस नहस
विरोध में खड़ा
पेड़ बनकर नहीं तलवार बनकर
उग रहे हैं लोग
एक दूसरे का गला काटते
एक दूसरे से ईर्ष्या करते
एक दूसरे के दुश्मन
चारों तरफ हरियाली नहीं
पेड़ पौधों की क्यारी नहीं
फूल कलियों की फुलवारी नहीं
फलदायिनी कोई मां की
सवारी नहीं
चारों तरफ मचा है
हाहाकार
सब लहूलुहान
फैला है लाल कणों का रक्त
बिछे पड़े हैं रक्तरंजित
शव
यह है आज की
शिक्षा की देन
इसे कह रहे सब प्रगति
इसे मान रहे सब उन्नति
कोई भी चीज
जमीन से उठकर
आसमान की तरफ
खड़ी होती है
आगे बढ़ती है
यह कलयुग है
दौड़ पगों की आगे की
तरफ न होकर
पीछे दिशा में पलटते
कदमों की है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001
मैम कृपया रचना के साथ रचना से जुड़ी तस्वीर लगाएं
मीनल जी यह आप ही कर ही सकती हैं जैसे आप अपनी फोटो लगा रही है रचना प्रकाशित करने के बाद बस यही आपको अपनी तस्वीर का चुनाव करने के बजाय आपकी रचना की तस्वीर का चुनाव करना है इसके लिए आप गूगल से कोई भी तस्वीर डाऊनलोड कर अपने फोन में सेव कर सकती हैं ताकि जब आप तस्वीर लगाए तो अपनी तस्वीर के बजाय वह तस्वीर लगा दें।
यह तो आप ही कर सकते हैं। मैं भला कैसे?