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पेड़ बनकर नहीं तलवार बनकर - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पेड़ बनकर नहीं तलवार बनकर

  • 192
  • 5 Min Read

एक बीज बोया
प्रेम का
सोचा हमेशा की तरह ही
एक पेड़ बनकर उगेगा
आंखों को यही सब
देखने की
आदत जो है
इतनी सदियों से लेकिन
सोच के विपरीत हो रहा है
आजकल के युग में
सब
सब कुछ उलट पुलट
तहस नहस
विरोध में खड़ा
पेड़ बनकर नहीं तलवार बनकर
उग रहे हैं लोग
एक दूसरे का गला काटते
एक दूसरे से ईर्ष्या करते
एक दूसरे के दुश्मन
चारों तरफ हरियाली नहीं
पेड़ पौधों की क्यारी नहीं
फूल कलियों की फुलवारी नहीं
फलदायिनी कोई मां की
सवारी नहीं
चारों तरफ मचा है
हाहाकार
सब लहूलुहान
फैला है लाल कणों का रक्त
बिछे पड़े हैं रक्तरंजित
शव
यह है आज की
शिक्षा की देन
इसे कह रहे सब प्रगति
इसे मान रहे सब उन्नति
कोई भी चीज
जमीन से उठकर
आसमान की तरफ
खड़ी होती है
आगे बढ़ती है
यह कलयुग है
दौड़ पगों की आगे की
तरफ न होकर
पीछे दिशा में पलटते
कदमों की है।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

मैम कृपया रचना के साथ रचना से जुड़ी तस्वीर लगाएं

नेहा शर्मा3 years ago

मीनल जी यह आप ही कर ही सकती हैं जैसे आप अपनी फोटो लगा रही है रचना प्रकाशित करने के बाद बस यही आपको अपनी तस्वीर का चुनाव करने के बजाय आपकी रचना की तस्वीर का चुनाव करना है इसके लिए आप गूगल से कोई भी तस्वीर डाऊनलोड कर अपने फोन में सेव कर सकती हैं ताकि जब आप तस्वीर लगाए तो अपनी तस्वीर के बजाय वह तस्वीर लगा दें।

Minal Aggarwal3 years ago

यह तो आप ही कर सकते हैं। मैं भला कैसे?

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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