कविताअतुकांत कविता
देवभूमि में प्रकृति का कहर
ग्लैशियर का फटना
कहर का बरपना
क्यों कर हुई मौजूदा घटना? कहां?
देवभूमि में प्रकृति का कहर
सुनकर रोम -रोम गया सिहर
देव प्रसन्न तो आशीर्वाद,देव खफा!
अब होगा तांडव!
तापमान की अति हुई, क्या गर्मी क्या जाड़ा
नदियां और झीलें जम गईं
पड़ा था इतना जाड़ा
जमीं बर्फ ने अवरूद्ध किया नदी का प्रवाह
फटी ग्लेशियर ,अब देख प्रकृति का वार!
विकास ध्वस्त,इन्सान पामाल -पस्त
सैलाब ही सैलाब, तबाही का मंजर
चेत जा खुदगर्ज अभी भी
कुदरत से खिलवाड़ न कर
जितना दिया कुदरत ने उसमें सब्र कर
अति सर्दी,अति गर्मी,अति वृष्टि
अति हो जाए , नहीं रुकती अनावृष्टि
न रुकती कुदरत की वक्र दृष्टि
प्रकृति व जल के महत्व को मानेंगे जब तलक
पर्यावरण,प्रकृति संरक्षण को जानेंगे जब तलक
कहीं देर न हो जाए.... अंधेर न हो जाए....!