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कविताअन्य
फिसलता वक्त मुट्ठी में नयन की छांव लाया हूं। शहर की तंग गलियों में ये नन्हें पांव लाया हूं। मिली थी जो मुझे यारों मेरे घर से निकलने पर, फटे उस नोट की तह में मैं पूरा गांव लाया हूं। - विमल शर्मा 'विमल'