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कवितानज़्म
गैर तो आख़िर गैर हैं फिर गैरों से गिला क्या अपने तो अपने हैं इन अपनों से मिला क्या नेकियां कर और दरिया में डालकर भूल जा भला किया अच्छा किया उसका सिला क्या @"बशर"