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देश के रास्तों पर शूल - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

देश के रास्तों पर शूल

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जो बोएंगे वो ही काटेंगे
इसे भारतवासी गए भूल
अपने कर्मों से ही बिछाते
गए देश के रास्तों पर शूल
दिन पर दिन बढ़ता रहा इस
देश में अंग्रेजी का ही जाल
बुद्धिजीवियों के सभी बच्चे
अंग्रेजी पढ़ करते रहे धमाल
साल में एक दिन ही जताते
वो हिंदी के प्रति अपना प्यार
ऐसे में भला कैसे दुनियाभर
में होगा हिंदी का सही विस्तार
हिंदी दिवस पर सार्वजनिक मंचों
पे ऐसे लोग भी बहाते रहते आंसू
जो अपने बच्चों को अंग्रेजीदां ही
बनाने का फैसला कर चुके धांसू
ऐसे दोहरे चरित्र ने ही किया है
देश में हिंदी का बंटाधार चहुंओर
शीर्ष संस्थानों में बैठे लोगों के
लिए हिंदी रुपयों का ही कौर
हिंदी से जीविका कमाने वाले भी
अंग्रेजी को ही खुलकर अपनाते हैं
उनकी संतति यूएस या यूके में
है ये परिचितों को सदा बताते हैं

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