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कवितानज़्म
चार दिनोंकी है ये मुलाक़ात याद रख भूल जाएंगे तुझ को ये बात याद रख अहम छोड़ खुद को सब के बाद रख अपनी हैसियत ओ औक़ात याद रख @"बशर"