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सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात

  • 37
  • 1 Min Read

घर से चले थे ढूंढने केलिए अपने कुछ ख़्वाब ए हयात
रास्ते में सामने आकर खड़े हो गए तमाम ग़म ए हयात
© 'बशर' بشر.

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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